कोई नहीं यह जान सका ।
क्या दर्द छिपाए है भीतर
कोई ना यह पहचान सका ।
उसकी शक्ति का मूल्यांकन
तुम कैसे कर पाओगे ?
कष्ट सहे और जन्म दिया तुम्हें
कैसे यह कर्ज चुकाओगे ?
अपने अहं के मद में तुम
क्यों उसकी बलि चढ़ाते हो ?
औरत हो तो सहना सीखो
क्यों हर बार यही दोहराते हो ?
दुर्योधन और दुशासन बन
क्यों उसकी लाज चुराते हो ?
नवदुर्गा की पूजा कर फिर
काहे का ढोंग रचाते हो ?
नारी शक्ति है नारी भक्ति है
जीवन का आधार है ।
नारी बिना है सॄजन अधूरा
अपूर्ण यह संसार है ।
अर्धनारीश्वर का रूप धर
शिव ने सबको यह ज्ञान दिया ।
ब्रहमाजी ने सृष्टि रची तो
पहले माया को मान दिया ।
नारी पुरुष में भेद करो ना
दोनों एक समान हैं ।
नारी का सम्मान करो तुम
यही पुरुषत्व की पहचान है ।
प्रज्ञा चक्रपाणी