Sunday, December 11, 2022

नारी

भरी सभा में मौन खड़ी क्यों 
कोई नहीं यह जान सका ।
क्या दर्द छिपाए है भीतर 
कोई ना यह पहचान सका ।
उसकी शक्ति का मूल्यांकन 
तुम कैसे कर पाओगे ?
कष्ट सहे और जन्म दिया तुम्हें 
कैसे यह कर्ज चुकाओगे ?
अपने अहं के मद में तुम 
क्यों उसकी बलि चढ़ाते हो ?
औरत हो तो सहना सीखो 
क्यों हर बार यही दोहराते हो ?
दुर्योधन और दुशासन बन 
क्यों उसकी लाज चुराते हो ?
नवदुर्गा की पूजा कर फिर 
काहे का ढोंग रचाते हो ?
नारी शक्ति है नारी भक्ति है 
जीवन का आधार है ।
नारी बिना है सॄजन अधूरा 
अपूर्ण यह संसार है ।
अर्धनारीश्वर का रूप धर 
शिव ने सबको यह ज्ञान दिया ।
ब्रहमाजी ने सृष्टि रची तो 
पहले माया को मान दिया ।
नारी पुरुष में भेद करो ना 
दोनों एक समान हैं ।
नारी का सम्मान करो तुम 
यही पुरुषत्व की पहचान है ।
                                             प्रज्ञा चक्रपाणी  

Saturday, December 3, 2022

कोई बता दे




कितने फ़ासले तय करने हैं

कितनी दूर तक जाना है
कौन सी मंजिल है मेरी
कहाँ मेरा ठिकाना है
कितना भटका राही हूँ मैं
कि हर राह का इक फ़साना है
किसी मोड़ पर कुछ खोना है
किसी मोड़ पर कुछ पाना है
कोई बात दे मुझे ज़रा
कौन सा सफ़र है आखिरी
कहाँ ख़्वाहिशों को चैन आए
किस मुकाम को गले लगाना है.....?


Pragya Chakrapani




अनामिका

शीतल सरल शालिनी सी तुम, चम चम चमकती चाँदनी सी।  तारों की ओढ़नी ओढ़े यामिनी, या कुसुमों सी महकती कामिनी।  मंदिर में गूँजती आर...